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भ्रष्टाचाररूपी दानव

कडुवा सच
कडुवा सच
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भ्रष्टाचार …. भ्रष्टाचार ….भ्रष्टाचार की गूंज “इंद्रदेव” के कानों में समय-बेसमय गूंज रही थी, इस गूंज ने इंद्रदेव को परेशान कर रखा था वो चिंतित थे कि प्रथ्वीलोक पर ये “भ्रष्टाचार” नाम की कौन सी समस्या आ गयी है जिससे लोग इतने परेशान,व्याकुल व भयभीत हो गये हैं न तो कोई चैन से सो रहा है और न ही कोई चैन से जाग रहा है ….बिलकुल त्राहीमाम-त्राहीमाम की स्थिति है …. नारायण – नारायण कहते हुए “नारद जी” प्रगट हो गये …… “इंद्रदेव” की चिंता का कारण जानने के बाद “नारद जी” बोले मैं प्रथ्वीलोक पर जाकर इस “भ्रष्टाचाररूपी दानव” की जानकारी लेकर आता हूं।

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…….. नारदजी भेष बदलकर प्रथ्वीलोक पर ….. सबसे पहले भ्रष्टतम भ्रष्ट बाबू के पास … बाबू बोला “बाबा जी” हम क्या करें हमारी मजबूरी है साहब के घर दाल,चावल,सब्जी,कपडे-लत्ते सब कुछ पहुंचाना पडता है और-तो-और कामवाली बाई का महिना का पैसा भी हम ही देते हैं साहब-मेमसाब का खर्च, कोई मेहमान आ गया उसका भी खर्च …. अब अगर हम इमानदारी से काम करने लगें तो कितने दिन काम चलेगा ….. हम नहीं करेंगे तो कोई दूसरा करने लगेगा फ़िर हमारे बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे।

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……. फ़िर नारदजी पहुंचे “साहब” के पास …… साहब गिडगिडाने लगा अब क्या बताऊं “बाबा जी” नौकरी लग ही नहीं रही थी … परीक्षा पास ही नहीं कर पाता था “रिश्वत” दिया तब नौकरी लगी …. चापलूसी की सीमा पार की तब जाके यहां “पोस्टिंग” हो पाई है अब बिना पैसे लिये काम कैसे कर सकता हूं, हर महिने “बडे साहब” और “मंत्री जी” को भी तो पैसे पहुंचाने पडते हैं ….. अगर ईमानदारी दिखाऊंगा तो बर्बाद हो जाऊंगा “भीख मांग-मांग कर गुजारा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा”।

…..

…… अब नारदजी के सामने “बडे साहब” ……. बडे साहब ने “बाबा जी” के सामने स्वागत में काजू, किश्मिस, बादाम, मिठाई और जूस रखते हुये अपना दुखडा सुनाना शुरु किया, अब क्या कहूं “बाबा जी” आप से तो कोई बात छिपी नहीं है आप तो अंतरयामी हो …. मेरे पास सुबह से शाम तक नेताओं, जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों, अफ़सरों, बगैरह-बगैरह का आना-जाना लगा रहता है हर किसी का कोई-न-कोई दुखडा रहता है उसका समाधान करना … और उनके स्वागत-सतकार में भी हजारों-लाखों रुपये खर्च हो ही जाते हैं ….. ऊपर बालों और नीचे बालों सबको कुछ-न-कुछ देना ही पडता है कोई नगद ले लेता है तो कोई स्वागत-सतकार करवा लेता है …. अगर इतना नहीं करूंगा तो “मंत्री जी” नाराज हो जायेंगे अगर “मंत्री जी” नाराज हुये तो मुझे इस “मलाईदार कुर्सी” से हाथ धोना पड सकता है ।

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…… अब नारदजी सीधे “मंत्री जी” के समक्ष ….. मंत्री जी सीधे “बाबा जी” के चरणों में … स्वागत-पे-स्वागत … फ़िर धीरे से बोलना शुरु … अब क्या कहूं “बाबा जी” मंत्री बना हूं करोडों-अरबों रुपये इकट्ठा नहीं करूंगा तो लोग क्या कहेंगे … बच्चों को विदेश मे पढाना, विदेश घूमना-फ़िरना, विदेश मे आलीशान कोठी खरीदना, विदेशी बैंकों मे रुपये जमा करना और विदेश मे ही कोई कारोबार शुरु करना ये सब “शान” की बात हो गई है ….. फ़िर मंत्री बनने के पहले न जाने कितने पापड बेले हैं आगे बढने की होड में मुख्यमंत्री जी के “जूते” भी उठाये हैं … समय-समय पर “मुख्यमंत्री जी” को “रुपयों से भरा सूटकेश” भी देना पडता है अब भला ईमानदारी का चलन है ही कहां !!!

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……अब नारदजी के समक्ष “मुख्यमंत्री जी” ….. अब क्या बताऊं “बाबा जी” मुझे तो नींद भी नहीं आती, रोज “लाखों-करोडों” रुपये आ जाते हैं…. कहां रखूं … परेशान हो गया हूं … बाबा जी बोले – पुत्र तू प्रदेश का मुखिया है भ्रष्टाचार रोक सकता है … भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा तो तुझे नींद भी आने लगेगी … मुख्यमंत्री जी “बाबा जी” के चरणों में गिर पडे और बोले ये मेरे बस का काम नहीं है बाबा जी … मैं तो गला फ़ाड-फ़ाड के चिल्लाता हूं पर मेरे प्रदेश की भोली-भाली “जनता” सुनती ही नहीं है … “जनता” अगर रिश्वत देना बंद कर दे तो भ्रष्टाचार अपने आप बंद हो जायेगा …. पर मैं तो बोल-बोल कर थक गया हूं।

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…… अब नारद जी का माथा “ठनक” गया … सारे लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और प्रदेश का सबसे बडा भ्रष्टाचारी “खुद मुख्यमंत्री” अपने प्रदेश की “जनता” को ही भ्रष्टाचार के लिये दोषी ठहरा रहा है …. अब भला ये गरीब, मजदूर, किसान दो वक्त की “रोटी” के लिये जी-तोड मेहनत करते हैं ये भला भ्रष्टाचार के लिये दोषी कैसे हो सकते हैं !!!!!!

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…. चलते-चलते नारद जी “जनता” से भी रुबरु हुये ….. गरीब, मजदूर, किसान रोते-रोते “बाबा जी” से बोलने लगे … किसी भी दफ़्तर में जाते हैं कोई हमारा काम ही नहीं करता … कोई सुनता ही नहीं है … चक्कर लगाते-लगाते थक जाते हैं …. फ़िर अंत में जिसकी जैसी मांग होती है उस मांग के अनुरुप “बर्तन-भाडे” बेचकर या किसी सेठ-साहूकार से “कर्जा” लेकर रुपये इकट्ठा कर के दे देते हैं तो काम हो जाता है …. अब इससे ज्यादा क्या कहें “मरता क्या न करता” …… ……. नारद जी भी “इंद्रलोक” की ओर रवाना हुये ….. मन में सोचते-सोचते कि बहुत भयानक है ये “भ्रष्टाचाररूपी दानव” … !!!

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