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एक राज्य … चाय पार्टी के बहाने तीन राजनैतिक पार्टियों की मीटिंग … भ्रष्टाचारी, भुखमंगी व भिखारी पार्टियों के मुखिया आपस में चर्चा करते हुए … यार अपुन लोग कब तक इस तरह हाथ–पे–हाथ धरे बैठे रहेंगे … कब तक राज्य में सरकारी नुमाइंदे शासन करते रहेंगे … क्या इसलिए ही अपुन लोग चुनाव जीते हैं कि बाहर बैठकर तमाशा देखते रहें … पूरे तीन महीने हो गए राष्ट्रपति शासन चलते हुए और हम लंगड़े–लूलों की तरह देख रहे हैं … यार अगर यही हालत दो–तीन महीने और चलती रही तो हमारे तो खाने–पीने के लाले पड़ जायेंगे … करो भईय्या कुछ करो, कुछ सोचो कहीं ऐसा न हो की भ्रष्टाचार की फाइलें खुलने लगें और हम एक – एक कर धीरे – धीरे जेल के मेहमान बन जाएँ … भईय्या ये लोकतंत्र है और लोकतंत्र में हमें अर्थात जनता को ही शासन करने का मूल अधिकार है …
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… बात तो सभी सही हैं, अगर बहुमत नहीं है तो क्या हुआ फिर भी सत्ता पर अपना ही अधिकार है … एक काम करो आपस में लड़ना – झगड़ना बंद करो और एक जुट होकर सत्ता हथियाने का कोई उपाय ढूंढो … और हाँ आपस में फलां कुर्सी मेरी रहेगी, फलां उसकी रहेगी इस पचड़े में भी पड़ना ठीक न होगा, सत्ता में रहेंगे तो कुर्सी कोई भी हो माल तो मिलेगा ही … हाँ हाँ बिलकुल सत्यवचन है लेकिन अपन तीनों मिलकर सरकार भी तो नहीं बना सकते, पांच सीटें कम पड़ रही हैं, और जिनके पास सीटें हैं वे हमारे घोर विरोधी हैं … भ्रष्टाचारी पार्टी के प्रमुख ने कहा – एक काम करो पांच सीटों का जुगाड़ मैं करता हूँ पर एक शर्त है मुख्यमंत्री मैं रहूँगा तथा पांच सीटें जहां से जुगाड़ करूंगा उन्हें गृहमंत्री का पद देना पडेगा, बांकी सारे पद हम सब मिलकर बांट लेंगे, अगर हाँ है तो बोलो … हाँ हाँ सब मंजूर है … सब मंजूर है …
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… ( भ्रष्टाचार पार्टी के मुखिया जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं अपने घोर – महाघोर विरोधी पार्टी के मुखिया के पास पहुंचे ) देखो भईय्या अपुन लोग ठहरे नेता, और सत्ता से बाहर बैठना अपुन लोगों के हित में नहीं है, आखिर कब तक राज्य में राष्ट्रपति शासन चलता रहेगा, कब तक अपुन एक–दूसरे से खुन्नस पाले बैठे रहेंगे, तनिक सोचो इस खुन्नस से आपको या हमको क्या मिल रहा है, सब ठनठन गोपाल है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो कहीं लेने–के–देने न पड़ जाएं, लगता है अपुन लोगों का जेल जाने का योग बन रहा है यदि जल्द सत्ता में न आये तो कहीं पुरानी फाइलें न खुल जाएं, सोचो ज़रा सोचो … हाँ भाई जी कह तो सही रहे हो, पर हम कर भी क्या सकते हैं … बहुत कुछ कर सकते हैं सत्ता बना सकते हैं … कैसे, जल्द बताओ कैसे ? … मिलकर सरकार बना लेते हैं … जनता क्या सोचेगी … क्या भईय्या आप भी मूर्खों के बारे में सोचने बैठ गए …
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… तो ठीक है जैसा बोले वैसा कर लेते हैं … ये हुई न बात … आपके पास पांच सीटें हैं इसलिए आपको गृहमंत्रालय वो भी बिना रोक–टोक के, ठीक है … हाँ चल जाएगा और मुख्यमंत्री … वो मैं रहूँगा, और बांकी सब को भी संभाल लूंगा, बस एक शर्त है, शर्त ये है कि कितनी भी अंदरूनी बिकट–से–बिकट परिस्थिति क्यों न बन जाए पर छ ( ०६ ) महीने के पहले सरकार गिरना नहीं चाहिए … वो क्यों ? … वो इसलिए, हम सब को आखिर प्रदेश में ही राजनीति करना है, चुनाव लड़ने हैं, जनता को देखना है, मनाना है, संभालना है, अंदरूनी कलह व सरकार गिर जाने से जो बदनामी होती है, जो छीछालेदर होती है वह हमें मुंह दिखाने का भी नहीं छोड़ती है, याद है पिछले समय की स्थिति … हाँ हाँ बिलकुल सही कह रहे हो, चाहे जो भी हो जाए सरकार गिरने नहीं देंगे …
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… एक बात तो बताओ मुख्यमंत्री जी, मेरा मतलब होने वाले मुख्यमंत्री जी … हाँ हाँ पूछिए गृहमंत्री जी … इस बेमेल एवं न हजम होने वाले गठबंधन पर जनता तथा मीडिया को क्या जवाब देंगे … मीडिया !!! … आप, हम और मीडिया सब एक थाली के चट्टे–बट्टे हैं सब का एक ही “मंत्र” है “मनी एंड मैनेजमेंट” … और रही बात जनता की, तो बस एक जवाब, हमारा प्रदेश विकास के क्षेत्र में देश के अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ते जा रहा था जो हमसे देखा नहीं गया, इसलिए हमने अपने देश के मूलभूत सिद्धांत “अनेकता में एकता ” को बुलंद करना उचित समझा तथा राज्य के विकास के लिए हम एक हुए हैं ….. क्या बोलते हो … “अनेकता में एकता” जिन्दावाद … जिन्दावाद – जिन्दावाद … जिन्दावाद – जिन्दावाद !!!
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