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‘लिव–इनरिलेशनशिप‘ सेतात्पर्यएकऐसेरिश्तेसेहैजिसमेंमर्द–औरतसामाजिकतौरपरशादीकियेबगैरसाथ–साथरहतेहैंऔरउनकेबीचकेसंबंधनिर्विवादरूपसेपति–पत्नीजैसेहीहोतेहैं, इसरिश्तेकीखासियतयहहोतीहैकिस्त्री–पुरुषदोनोंहीएक–दूसरेकेप्रतिपूर्णरूपसेसमर्पितहोतेहैंफर्कसिर्फइतनाहोताहैकिउनकीसामाजिकरीतिरिवाजकेअनुरूपशादीनहींहुईहोतीहै।यहस्थितिसमयकेबदलावकेसाथ–साथआधुनिकसंस्कृतिकाएकहिस्साबनगईहैकहनेकातात्पर्ययहहैकिआजकेबदलतेपरिवेशमेंयुवक–युवतियांइतनेआधुनिकहोगएहैंकिवेआपसीताल–मेलपरमित्रवतएकसाथपति–पत्नीकेरूपमेंसाथसाथरहनागौरवकीबातसमझतेहैं। इसेहमगौरवनसमझतेहुएजरुरतभीकहसकतेहैं,जरुरतइसलिएकिआधुनिकसमयमेंएकदूसरेकोसमझनेतथाकाम–धंधेमेंसेटलहोनेकेलिएसमयकीआवश्यकताकोदेखतेहुएवेदोनोंएकदूसरेकेसाथरहनेवजीनेकेलिएस्वैच्छिकरूपसेतैयारहोजातेहैंऔरजीवनयापनशुरूकरदेतेहैं।समयकेबदलावकेसाथ–साथसाल, दोसालयाचारसालकेबादयदिउन्हेंमहसूसहोताहैकिआगेभीसाथसाथरहाजासकताहैतोवेविधिवतशादीकरलेतेहैंयाफिरस्वैच्छिकरूपसेब्रेक–अपकरअलगअलगहोजातेहैं।
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‘लिव–इनरिलेशनशिप‘ एकतरहकामित्रवतसंबंधहैजिसेविवाहकेदायरेमेंकतईनहींरखाजासकताक्योंकिविवाहएकसामाजिकवपारिवारिकबंधनअर्थातरिवाजहैजिसकीएकआचारसंहिताहै, मानमर्यादाहै, कानूनीप्रावधानहैं, ठीकइसीक्रममेंविगतदिनोंसुप्रीमकोर्टनेभीएकफैसलेमेंलिव–इनरिलेशनशिपकोविवाहकेदायरेमेंनरखतेहुएघरेलुहिंसासंबंधीकानूनीदायरेसेबाहरमानाहै। सुप्रीमकोर्टकायहफैसलानिश्चिततौरपरस्वागतयोग्यहैक्योंकिइसफैसलेसेलिव–इनरिलेशनशिपकेबढ़तेचलनमेंकुछमात्रामेंकमीअवश्यआनीचाहिए। यदि इसरिश्तेकोकानूनीयासामाजिकसपोर्टमिलताहैतोनिश्चिततौरपरयहएकसामाजिकक्रान्तिकारूपलेलेगाजोसामाजिकमान–मर्यादावपारिवारिकद्रष्ट्रीकोणसेअहितकरसाबितहोगा। किन्तुहमएकसामाजिकद्रष्ट्रीकोणसेदेखेंतोइस ‘लिव–इनरिलेशनशिप‘ रूपीअनैतिकवअसामाजिकरिश्तेकोस्वछंदछोड़देनाभीअहितकरहीसाबितहोगा, क्योंकिइसरिश्तेसेतरहतरहकीआपराधिकघटनाओंकोजन्मलेनेकाखुलाअवसरमिलेगा, इसलिएमेरामाननाहैकीइसअनैतिकरिश्तेकोकानूनीअमली–जामापहनातेहुएकानूनीबंधनमेंबांधाजानासामाजिक, पारिवारिकवमानवीयद्रष्ट्रीकोणसेहितकरहोगा।
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हालांकि लिव–इन रिलेशनशिप रूपी रिश्ते का जन्म आधुनिक संस्कृति रूपी कोख से हुआ है अत: इसे स्वछंद छोड़ देना समाज के हित में कतई नहीं होगा, ये माना की इस रिश्ते के परिणाम स्वरूप दहेज़ प्रताड़ना, दहेज़ ह्त्या व अन्य घरेलु हिंसा जैसे अपराध घटित नहीं होंगे किन्तु सामूहिक बलात्कार, ग्रुप सेक्स, शारीरिक शोषण, ब्लेक मेलिंग, ह्त्या, ब्लू फिल्म मेकिंग जैसे अपराधों को निसंदेह प्रश्रय मिलेगा, जो समाज को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कलंकित ही करेंगे। यहाँ पर मेरा मानना तो यह है की इस रिश्ते को हम जितना नजर अंदाज करेंगे या स्वछंदता प्रदान करेंगे वह उतना की ‘बेसरम‘ पेड़ की तरह स्वमेव फलता–फूलता रहेगा और समाज रूपी ‘बगिया‘ को प्रदूषित करता रहेगा। यदि हम एक साफ़–सुथरे समाज की आशा रखते हैं तो हमें निसंदेह स्वत: आगे बढ़कर इस अनैतिक रिश्ते पर गंभीर मंथन कर इसे कानूनी बंधन में बांधना आवश्यक होगा जो न सिर्फ कानूनी रूप से वरन सामाजिक द्रष्ट्रीकोण से भी हितकर होगा।
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