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लघु कथा : निष्ठा ……… बाल दिवस स्पेशल !

कडुवा सच
कडुवा सच
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एक साहब रात के साढ़े–नौ बजे शराब पीकर अपने मित्र के साथ बार से बाहर निकले और जैसे ही कार के पास पहुंचे एक छोटा बच्चा लगभग ७–८ साल का हाथ बढाते हुए बोला – साहब मेरी माँ बहुत बीमार है बिस्तर पर पडी है कल से हम दोनों ने कुछ खाया नहीं है कुछ रुपया–पैसा दे देंगे तो मेहरवानी हो जायेगी, मैंने आपकी गाडी भी साफ़ कर दी है ! … साहब ने सिर से पाँव तक देखा और चिल्लाते हुए बोला – चल हट, आ जाते हो भीख माँगने ! … साहब मैंने आपकी गाडी को अपनी शर्ट से साफ़ भी कर दिया है कुछ दे देंगे तो गरीब की दुआ मिलेगी ! … चल हट, भाग यहाँ से … तभी साथी मित्र बोल पडा – अरे दे देना यार, क्या फर्क पड़ता है अभी दरबान और वेटर को भी तो बे–वजह ५०–५० रुपये टिप्स देकर आ रहा है ! … अरे यार तू जानता नहीं, इन्होंने भीख माँगने का धंधा बना कर रखा हुआ है … तब भी ५–१० रुपये से क्या फर्क पड़ता है यार … एक काम कर तू ही इसे गोद ले ले … अरे यार तू भी बात बढाने बैठ गया, रुक एक मिनट, और पास की होटल पर बच्चे को लेकर गया और ५० का नोट देते हुए होटल मालिक को बोला – एक पार्सल में इस बच्चे को रोटी–सब्जी, दाल–चावल दे दो … पार्सल हाथ में लेते हुए बच्चा बोला – साहब मैं और मेरी माँ आपके लिए दुआ करेंगे, आप घर का पता बता दें तो मैं आकर कुछ साफ़–सफाई का काम भी कर जाया करूंगा … अरे सब ठीक है कोई बात नहीं, वैसे मेरा घर नेहरू नगर में काली मंदिर के बाजू वाला गुलाबी बंगला है कभी कुछ और जरुरत पड़े तो आ जाना ! … वह दूसरे दिन से लगातार चार–पांच दिनों तक नोटिस कर रहा था कि घर के बाहर खडी कार साफ़–सुथरी रहती थी वह यह सोच कर आश्चर्यचकित था कि कार साफ़ कैसे हो रही है ! … अगले ही दिन वह सुबह जल्दी उठकर खिड़की के पास बैठकर कार पर नजर रख रहा था और देख कर आश्चर्यचकित हुआ कि वह बार के बाहर मिला लड़का जिसे उसने खाने का पार्सल दिलवाया था वह आकर अपनी शर्ट से कार को साफ़ कर चुप–चाप जाने लगा … तभी दौड़कर उसने बच्चे को रोका तथा बच्चे की निष्ठा देखकर बोला तुम माँ को लेकर आ जाओ और आज से ही तुम दोनों मेरे घर पर काम करना शुरू कर दो !

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