कडुवा सच
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मौज हुईमौजोंकीयारा
किसान–मजदूरहुआबेचारा
बस्तीभीबे–जानहोगई
शैतानोंकीशानहोगई
देखदेखकरसोचरहाहूँ
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दरअन्दरधधकरहाहूँ !
…
भरी सभा खामोश हो गई
दुस्शासन की मौज हो गई
अस्मत भी लाचारहोगई
लुट रही है, लूट रहे हैं
कब तक देखूं सोच रहा हूँ
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दरअन्दरधधकरहाहूँ !
…
एकभयानकतूफ़ानचलरहा
कैसे जीवन गुजर रहा है
कबसुबह – कबशामहोरही
पतानहीं, क्या बेचैनी है
और क्यों पसरा सन्नाटा है
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दर – अन्दरधधकरहाहूँ !
…
बाहरदेखोसबचोरहुएहैं
मौज – मजेमेंचूरहुएहैं
नष्टहोगईआनदेशकी
सत्ताभीअबभ्रष्टहोगई
येपीड़ाभीसतारहीहै
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दर – अन्दरधधकरहाहूँ !
…
कतरा – कतराव्याकुलहै
कबनिकलूंयेसोचरहाहै
कबतकमैंजज्बातोंको
शब्दोंकेअल्फाजोंसे
बाहरशोलेपटकरहाहूँ
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दर – अन्दरधधकरहाहूँ !!!
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