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भभक रहा हूँ, दहक रहा हूँ, अन्दर अन्दर धधक रहा हूँ !!

कडुवा सच
कडुवा सच
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मौज हुईमौजोंकीयारा
किसानमजदूरहुआबेचारा
बस्तीभीबेजानहोगई
शैतानोंकीशानहोगई
देखदेखकरसोचरहाहूँ
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दरअन्दरधधकरहाहूँ !

भरी सभा खामोश हो गई
दुस्शासन की मौज हो गई
अस्मत भी लाचारहोगई
लुट रही है, लूट रहे हैं
कब तक देखूं सोच रहा हूँ
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दरअन्दरधधकरहाहूँ !


एक
भयानकतूफ़ानचलरहा
कैसे जीवन गुजर रहा है
कबसुबहकबशामहोरही
पतानहीं, क्या बेचैनी है
और क्यों पसरा सन्नाटा है
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दरअन्दरधधकरहाहूँ !

बाहरदेखोसबचोरहुएहैं
मौजमजेमेंचूरहुएहैं
नष्टहोगईआनदेशकी
सत्ताभीअबभ्रष्टहोगई
येपीड़ाभीसतारहीहै
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दरअन्दरधधकरहाहूँ !

कतराकतराव्याकुलहै
कबनिकलूंयेसोचरहाहै
कबतकमैंजज्बातोंको
शब्दोंकेअल्फाजोंसे
बाहरशोलेपटकरहाहूँ
भभकरहाहूँ , दहकरहाहूँ
अन्दरअन्दरधधकरहाहूँ !!!

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