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मुझे कोई दुख, अफसोस नहीं है, उम्रकैद से !!

कडुवा सच
कडुवा सच
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कविता : उम्रकैद

उम्रकैद
एकसजाहै ! सच
मुझेउम्मीदथी
किमुझेसजाहोगी
मैंजानताथा
बहुतपहलेसे
किऐसाहोसकताहै
क्यों, क्योंकिमैं
अपनेदेशकेहालातको
आजकलसेनहीं
वरनसालोंसेजानताहूँ !

आयेदिनलूट, ह्त्या
छेड़छाड़, बलात्कार
भ्रष्टाचार, घोटाले
जैसीगंभीरवारदातें
खुलेआमहोतीहैं
औरअपराधी
खुल्लमखुल्लाघूमतेहैं
अबउनकाक्यादोष !
वेपकड़मेंनहींआते
औरयदिपकड़आतेभीहैं
तोउन्हेंकोईसजा
पतानहीं, क्योंनहींहोती !

परमुझेपताथा
किमुझेसजाजरुरहोगी
होनीहीचाहिए
क्यों, क्योंकिमैं
लड़तारहाहूँ
लड़रहाहूँअन्यायसे !
चलोठीकहीहुआ
कौनचाहता, कौनचाहेगा
मेरास्वछंदरहना !

मेरीबातें, आवाजें
डरावनीसीहैं
जोबेचैनकरतीहैं
कुछेककानोंको
कमसेकमअबउन्हें
सुकूनरहेगा
मेरेकालकोठरीमेंरहनेसे
परकुछ, दुखीजरुरहोंगे
उनकादुख, अबक्याकहूं
परमुझेकोईदुख
अफसोसनहींहै
उम्रकैदसे !!

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