कडुवा सच
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कविता : उम्रकैद
उम्रकैद
एकसजाहै ! सच
मुझेउम्मीदथी
किमुझेसजाहोगी
मैंजानताथा
बहुतपहलेसे
किऐसाहोसकताहै
क्यों, क्योंकिमैं
अपनेदेशकेहालातको
आज–कलसेनहीं
वरनसालोंसेजानताहूँ !
…
आयेदिनलूट, ह्त्या
छेड़छाड़, बलात्कार
भ्रष्टाचार, घोटाले
जैसीगंभीरवारदातें
खुलेआमहोतीहैं
औरअपराधी
खुल्लम–खुल्लाघूमतेहैं
अबउनकाक्यादोष !
वेपकड़मेंनहींआते
औरयदिपकड़आतेभीहैं
तोउन्हेंकोईसजा
पतानहीं, क्योंनहींहोती !
…
परमुझेपताथा
किमुझेसजाजरुरहोगी
होनीहीचाहिए
क्यों, क्योंकिमैं
लड़तारहाहूँ
लड़रहाहूँअन्यायसे !
चलोठीकहीहुआ
कौनचाहता, कौनचाहेगा
मेरास्वछंदरहना !
…
मेरीबातें, आवाजें
डरावनीसीहैं
जोबेचैनकरतीहैं
कुछेककानोंको
कमसेकमअबउन्हें
सुकूनरहेगा
मेरेकालकोठरीमेंरहनेसे
परकुछ, दुखीजरुरहोंगे
उनकादुख, अबक्याकहूं
परमुझेकोईदुख
अफसोसनहींहै
उम्रकैदसे !!
…
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