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बाबा नागार्जुन : एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी …

कडुवा सच
कडुवा सच
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बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
कुछछोटेबहुतबड़े, तोकुछबड़ेबेहदसहजदिखे !

बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
विजयबहादुर सिंह, जानेक्योंआँखोंमेंबसगए !

बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
किसीसेनहींमिला, परबहुतोंसेमुलाक़ातहोगई !

बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
एकसक्शियतसे, मिलतेमिलते, ठहरगया !

बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
बड़ेबड़ेमिजाजकेलोग, छोटीछोटीयादेंबिखेरगए !

बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
प्रमोदवर्मास्मृतिसंस्थानके लिए, एकमीलकापत्थर !

बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
विश्वरंजन, कहींकुछ, नामकेअनुरूपनजर आए !

बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
मैंक्याथा, क्योंथा, कहाँतकथापहुंचा, चर्चाजारीरखें !

बाबानागार्जुन : एकअविस्मर्णीयराष्ट्रीयसंगोष्ठी
देखसुनकर, मैंनेभी, जानेक्याक्यासीखलिया !

फिर फिर नागार्जुन, एक अविस्मर्णीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
संस्मरण : बाबा नागार्जुन, कुछ भूल गए, कुछ याद रहे !!


( … आयोजनकोदेखनेसुननेकेबादजानेक्योंयेपंक्तियाँमेरेजहनमेंबिजलीसीकौंधपडींजिन्हेंप्रस्तुतकरनेसेयहाँ खुद को नहीं रोक पा रहा हूँ …. इसलिएप्रस्तुतहैंइनपंक्तियोंमेंछिपेभावोंपरफिरकभीप्रकाशडालनेकाप्रयासअवश्यकरूंगा ……. !! )

लिखना, बहुतकुछ, बहुतकुछलिखनाचाहताहूँ
परजब, जेबमेंहांथडालताहूँ, निकालनहींपाता !!

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