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… लोकपाल के दायरे में … प्रधानमंत्री !!

कडुवा सच
कडुवा सच
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हमने माना …
और हम मानते भी हैं कि –
हमारे देश के प्रधानमंत्री …
और उच्च व उच्चतम न्यायालयों के
न्यायाधिपति, न्यायमूर्ती, जज, प्रधान
निसंदेह … ईमानदार थे …
ईमानदार हैं … और ईमानदार रहेंगे !
कौन कहता है कि –
ये कभी भ्रष्ट भी … हो सकते हैं
नहीं … कतई नहीं … यह असंभव–सा है
जब असंभव–सा है … फिर संभवता पर
बहस … क्यों … किसलिए
नहीं … बिलकुल नहीं होना चाहिए
जब ईमानदार हैं … थे … और रहेंगे
फिर बहस … बेफिजूल की बातें हैं !
जब … इमानदारी पर … कोई प्रश्न ही न उठता हो
तब … ये … लोकपाल के दायरे में हों
या न हों … क्या फर्क पड़ता है !
अरे भाई … फर्क पड़ना भी नहीं चाहिए !!
मेरा तो यह मानना है कि –
कोई बोले … या न बोले … पर इन्हें
स्वत: ही … स्वस्फूर्त … खुद को
जन लोकपाल के दायरे में … शामिल कर देना चाहिए
ताकि … कोई इन पर … बेवजह ही … झूठे–सच्चे
भ्रष्टाचार के आरोप न लगा पाए … गर कोई लगाए … तब
आरोप लगाने वालों की … खटिया खड़ी … की जा सके
क्यों … क्योंकि … आरोप … जब झूठे लगेंगे
तब झूठे आरोप … लगाने वालों की
निसंदेह … खटिया खड़ी … होनी ही चाहिए !!
आरोप सच्चे … सच्चे हो ही नहीं सकते
क्यों … क्योंकि … ये ईमानदार हैं … थे … और रहेंगे !!!

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