कडुवा सच
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‘हिन्दी’ है
जो हमें आज भी
घर-आँगन
खेतों-खलियानों
बाग़-बगीचों –
में कलियों सी खिलती लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा ‘पूजा की माला’ लगे है !
‘हिन्दी’ है
जो हमें आज भी
चन्दन
गुलाब
कस्तूरी
में महकती खुशबू लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा ‘हवन की खुशबू’ लगे है !
‘हिन्दी’ है
जो हमें आज भी
माँ के गुस्से
बाप की डांट
गुरु की लताड़ –
में भी कुछ न कुछ देती लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा ‘मिश्री सी मीठी’ लगे है !
‘हिन्दी’ है
जो हमें आज भी
दोस्ती
मुहब्बत
भाईचारे –
में कदमों संग कदम बन चलती लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा ‘जिन्दगी का साया’ लगे है !
‘हिन्दी’ है
जो हमें आज भी
दिल की
मन की
ख्यालों की
ख़्वाबों की –
‘दुल्हन’ लगे है
लगे तो है लगे, पर
कहीं ज्यादा ‘मंदिर की मूरत’ लगे है !!
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