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छत्तीसगढ़ : जीत-हार को लेकर कांग्रेस-भाजपा दोनों संशय में !

कडुवा सच
कडुवा सच
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विधानसभा चुनावों की घोषणा हो जाने के पश्चात भी आज छत्तीसगढ़ की राजनीति के वर्त्तमान हालात ऐसे हैं कि लगभग चारों ओर मायूसी ही मायूसी के नज़ारे हैं, जनमानस में न तो सत्तारूढ़ भाजपा को लेकर उत्साह नजर आ रहा है और न ही विपक्ष में बैठी कांग्रेस को लेकर, यहाँ यह सवाल उठना लाजमी होगा कि ऐसे हालात क्यों हैं, ऐसी मायूसी क्यों है ? इन सवालों के जवाब उतने भी कठिन नहीं हैं कि सड़क पर चलता-फिरता आदमी भी न दे सके ! प्रदेश में छाई राजनैतिक मायूसी के लिए एक-दो राजनैतिक व्यक्तित्वों को जिम्मेदार भी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि एक-दो लोग सम्पूर्ण प्रदेश में ऐसे हालात निर्मित होने के लिए जिम्मेदार हो भी नहीं सकते। सीधे व स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो वर्त्तमान में पक्ष व विपक्ष में बैठी सम्पूर्ण राजनैतिक जमात इसके लिए जिम्मेदार है, दोनों ही दलों ने पिछले पांच सालों में कभी भी अपनी कार्यकुशलता व बुद्धिमता के ऐसे उदाहरण पेश नहीं किये जिनकी वजह से आज जनमानस में उत्साह की लहर दिखाई दे ?
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यदि आज मैं प्रदेश में फ़ैली राजनैतिक मायूसी के लिए पूरी राजनैतिक जमात को जिम्मेदार मान रहा हूँ तो उसकी वजह भी है, वजह ये है की पूरे पांच साल के कार्यकाल में न तो सत्ता पक्ष जनभावनाओं को समझने व उनके अनुकूल कार्य संपन्न करने की दिशा में खरी उतरी है और न ही विपक्ष में बैठे लोग जनभावनाओं के अनुकूल विपक्ष की भूमिका अदा करने में खरे उतरे हैं। दोनों दलों का साधारण परफारमेंस एक मूल वजह है जिसके कारण आगामी विधानसभा चुनावों में हार-जीत व टकराव को लेकर जनमानस व राजनैतिक हलकों में मायूसी नजर आ रही है। उत्साह की कमी व छाई मायूसी के कारण ही सम्भवत: दोनों प्रमुख दल भाजपा व कांग्रेस अपने लड़ने वाले विधानसभा प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करने से भी हिचकिचा रहे हैं, जीत-हार को लेकर सहमे हुए हैं ! विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, लगभग एक माह का समय ही बचा हुआ है, अगर अब भी, आगे भी, यह हिचकिचाहट जारी रही तो मायूसी चरम पर पहुँच जायेगी !
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आज छत्तीसगढ़ की राजनीति नई करवट लेने की कगार पर है, नई उम्मीदों व आशाओं को बेताब है, प्रदेश का जनमानस विकास, मंहगाई, रोजगार, भ्रष्टाचार व घोटालों को लेकर संवेदनशील है लेकिन दुःख इस बात का है कि उसके सामने कोई ऐसा चेहरा अर्थात विकल्प नहीं है, जिसकी ओर वह अपना स्पष्ट रुख कर सके ? जहां तक मेरा मानना है कि इन हालात से भाजपा व कांग्रेस दोनों भी अनभिज्ञ नहीं हैं, इन विकट हालात के बीचों-बीच से दोनों दल अपनी अपनी जीत की राह तलाशने की जुगत में हैं। एक ओर पिछले दस सालों से सत्ता में बने रहने के बावजूद भी जीत को लेकर भाजपा के चेहरे पर खुशी के भाव नजर नहीं आ रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस भी अपनी अंदरुनी कलह व नेतृत्व के अभाव के कारण जीत की मुद्रा में नजर नहीं आ रही है। दोनों ही खेमों में उत्साह की कमी व मायूसी साफ़ साफ़ देखी जा सकती है, आज यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आगामी विधानसभा चुनावों में जीत को लेकर दोनों ही दल संशय में हैं !

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